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औरंगाबाद जिले के अम्बा थाना अंतर्गत कटैया,कर्मा गांव की बेटी व देव थाना क्षेत्र के अतिनक्सल प्रभावित कहे जाने वाले भंडारी गांव की दरोगा बनी बहू सुनीता के चर्चे पूरे इलाके में हो रही है। सुनीता अपनी प्रारंभिक पढ़ाई गांव में ही कि थी। सुनीता के ससुराल वालों ने बताया कि उसकी शादी 12 जुलाई 2016 में स्व सत्येन्द्र यादव के पुत्र राजीव कुमार यादव के साथ प्रेम विवाह हुआ था। सुनीता को हमेशा पढ़ाई से लगाव रहा है इसलिए ससुराल में भी कम्पटीशन की तैयारी करने की छूट दी गयी थी। इसी क्रम में शादी के वर्ष ही सुनीता ने जेल पुलिस की परीक्षा दी थी। उसके पति राजीव को भी फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करने की ललक थी। राजीव अपने मेहनत के बल पर 2017 में आर्मी की नौकरी हासिल कर लिया। इधर पति के नौकरी के वर्ष ही सुनीता की जेल पुलिस के मेरिट लिस्ट में नाम की घोषणा हुई और उसे मेडिकल लिए बुलाया गया। पहले तो सुनीता मेडिकल देने जाने से मना कर दी ,परन्तु दुबारा बुलाने पर गयी और मेडिकल भी पास कर गयी। वहीं गांव में उसके प्रति आलोचना भी शुरू हो गयी लेकिन अपने ससुराल के लोगों की राय पर तथा घर की आर्थिक स्थिति देखते हुए वह गया सेंट्रल जेल में बतौर जेल पुलिस में तैनात हो गयी। उसके बाद उसका तबादला नवादा जेल में कर दिया गया। सुनीता जेल में ड्यूटी के दौरान भी सेल्फ स्टडी करती रही जिसके कारण विभाग के द्वारा चार बार उसे शोकॉज भी किया गया। आखिर में सुनीता का स्टडी रंग लाया और इस बार वह दरोगा की सभी परीक्षा उतीर्ण कर दरोगा बन गयी। पूरे घर मे खुशी का माहौल कायम है। घर वाले मिठाइयां खिलाकर बधाई दे रहे हैं।
बकरियां बेच कर बच्चों को पढ़ाया मां ने
राजीव की मां गरीबी के कारण बकरियां पाल कर और उसे बेच कर अपने बेटे को पढ़ाती रही। जिसका नतीजा आज यह है कि घर मे बेटे व बहु दोनो नौकरी हासिल कर कर न सिर्फ अपने मां व अरमानों को पूरा किया बल्कि अपने गांव,समाज का नाम भी रौशन कर रहे हैं। इस नौकरी के बाद जहां गांव में उनके विरुद्ध आलोचनायें होती थी वहां लोग बधाइयां देने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं।
सुनी थी हमारे ससुराल के गांव में नक्सली रहा करते हैं-सुनीता
सुनीता बताती है कि शादी के समय सुनी थी कि हमारे ससुराल के गांव में नक्सली रहा करते हैं ,परन्तु अब यह गांव नक्सलमुक्त बन गया है । गांव के लोग भी शिक्षित हो गए है। वहीं सुनीता का एक चार साल का बेटा भी है । वह बताती है मेरे पिता एक किसान थे ।जिस कारण मेरी प्रारंभिक पढ़ाई पांचवीं तक गांव के ही प्राइवेट स्कूल में हुई बाद में सरकारी स्कूल में । मेरे पिता गरीब होते हुए भी मेरे हौसले को कभी टूटने नही दिया । शादी के बाद भी मैं और मेरे पति अपनी पढ़ाई जारी रखी । उसने आज के दौर के लड़को-लड़कियों से अपील करते हुए कही की पैसा सबकुछ नही है। शिक्षा के आगे पैसों का कोई महत्व नही । मन लगाकर की गयी पढ़ाई एक दिन जरूर सफल बनाती है ।आज मैं पढ़ाई में पीजी डिप्लोमा ट्रांसलेटर कर चुकी है। वहीं उसने बताई की दुर्भाग्य की बात है कि हमारे गांव में एक अच्छा स्कूल नही है जहां बच्चे पढ़ सके । वह कहती है कि उसे और आगे बढ़ने की तमन्ना है। वह एक अच्छा ऑफिसर बन कर देश के साथ -साथ समाज की भी सेवा करना चाहती है। उसके इस जज्बे को हर कोई सलाम कर रहे हैं।