प्रशासन द्वारा खबर पर लगी रोक बनी खबर — डीएम के संज्ञान के बाद सुलझा “मीडिया विवाद”

औरंगाबाद, बिहार | फ्रेंड्स मीडिया रिपोर्ट

विधानसभा चुनाव के नामांकन कवरेज के दौरान शुक्रवार को औरंगाबाद समाहरणालय परिसर में हुई घटना ने जिले के मीडिया जगत को झकझोर दिया। कांग्रेस प्रत्याशी आनंद शंकर का बयान लेने पहुंचे पत्रकारों को पुलिस एवं दंडाधिकारी द्वारा रोके जाने और मोबाइल छीनने की खबरों के बाद, पूरे जिले में प्रशासन के प्रति असंतोष झलका।
पत्रकारों ने इसे “लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के साथ असम्मानजनक व्यवहार” बताया था।

मगर देर शाम स्थिति में सकारात्मक मोड़ आया।
जिला पदाधिकारी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस प्रकरण की जानकारी मिलते ही डीएम ने तुरंत संज्ञान लिया और अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि मीडिया लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है, और चुनावी पारदर्शिता बनाए रखने में पत्रकारों की भूमिका सराहनीय एवं सम्माननीय है।

विज्ञप्ति के अनुसार, पत्रकारों की सुविधा हेतु अब समाहरणालय मुख्य द्वार के दाईं ओर एक निर्धारित साक्षात्कार स्थल तय कर दिया गया है, जहाँ पत्रकार प्रत्याशियों से नामांकन के उपरांत सहज रूप से बातचीत कर सकेंगे।
डीएम ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि भविष्य में किसी भी प्रकार की बाधा या गलतफहमी न हो और मीडिया प्रतिनिधियों के साथ सहयोगपूर्ण व्यवहार सुनिश्चित किया जाए।

पत्रकारों ने भी इस पहल का स्वागत करते हुए कहा कि प्रशासन ने “स्थिति को संभालने में परिपक्वता दिखाई है।”
हालाँकि, कुछ पत्रकारों ने यह भी कहा कि “ऐसी स्थिति दोबारा न बने, इसके लिए स्थायी व्यवस्था और संवाद की निरंतरता जरूरी है।”

इस घटना ने जहाँ एक ओर प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल खड़े किए, वहीं दूसरी ओर संवाद और सुधार की मिसाल भी पेश की है।
औरंगाबाद ने आज यह सिखाया कि जब बात लोकतंत्र की हो — तो संवाद ही सबसे बड़ी जीत होती है।