समीक्षा – बिहार में किसानों के गुस्से के आगे हारी एनडीए,जहाँ-जहाँ बिहार में संगठित किसान आंदोलन हुआ, वहाँ-वहाँ हारी भाजपा या एनडीए

बिहार में पिछले कई वर्षों से एमएसपी रेट को लेकर और सड़क तथा पावर प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण में अनियमितता के खिलाफ किसानों की लड़ाई किसान बनाम सरकार चल रही है। मौजूदा समय में इन किसान आंदोलनों को राष्ट्रीय नेता राकेश टिकैत और पूर्व कृषि मंत्री और अब बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने सह दिया है और अब आंदोलन की अगुवाई भी कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि राकेश टिकैत ने जिन जिन लोकसभा सीटों पर किसान आंदोलन किया, उनमें से अधिकांश सीटों पर एनडीए गठबंधन हारी, अर्थात मोदी सरकार सभी सीट पर किसानों के रोष का शिकार रही।

अगर बिहार में किसान आंदोलन की बात करें तो पटना के धनरुआ और बिहटा में वर्षों से नेशनल हाईवे और बियाडा के साथ किसानों की लड़ाई चल रही है। यहाँ के किसान आंदोलन ने जबतब उग्र रूप भी धारण किया है। यहाँ तक कि कुछ किसानों की मृत्यु भी आंदोलन के दौरान हुई है। पाटलिपुत्रा लोकसभा के अंतर्गत आने वाली इस आंदोलनरत सीट पर राजद की मीसा भारती ने एनडीए के रामकृपाल यादव को मात दे दी। इन क्षेत्रों में राकेश टिकैत ने पिछले वर्ष जनसभा भी की थी।

उधर पावर प्लांट के लिए बक्सर के चौसा में जमीन अधिग्रहण किया गया, जहाँ मुआवज़े की राशि और भारी अनियमितता को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं। चुनाव के ठीक पहले 20 मार्च 2024 को पुलिस ने आंदोलन कर रहे लोगों पर जबरदस्त लाठी और बंदूक से हमला किया था। लोगों के घरों में घुसकर सामानों को पुलिस ने तोड़ा, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं। चौसा में बुढ़ी महिलाओं पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिससे कई महिलाएं गंभीर रूप से घायल हुईं। बाद में लगभग 50 किसानों की गिरफ्तारी हुई, जिसमें से लगभग 25 अभी भी जेल में बंद हैं और रिहाई की आस में हैं। लोकसभा चुनाव में बक्सर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले इस जगह से राजद के उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने इस मुद्दे को उठाया और पीड़ितों से मिलने भी गए। पहले भी सुधाकर सिंह ने राकेश टिकैत की अगुवाई में किसानों के पक्ष में वहाँ जनसभा किया था। किसानों ने सुधाकर सिंह के समर्थन को सकारात्मक रूप से स्वीकार किया और आगे की लड़ाई जारी रखी। 1 जून को हुए लोकसभा चुनाव में सुधाकर सिंह ने एनडीए के घटक दल भाजपा के उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी को इस सीट पर हराया। किसानों ने सुधाकर सिंह के पक्ष में एक माहौल खड़ा किया था जिसका असर भी दिखा। चुनावों के कुछ माह पूर्व बक्सर के चौसा में अन्यायपूर्ण भूमि अधिग्रहण को लेकर जिस तरह से बनारपुर कोचाढ़ मोहनपुरवा गांव में पुलिस घरों में घुसकर पुलिस बच्चा बूढ़ा से लेकर महिलाओं तक को बेरहमी से पीटी, इसके पीछे ऊर्जा मंत्री आरके सिंह की बड़ी भूमिका थी। नतीजा यह हुआ कि बिहार भाजपा के सबसे कद्दावर नेता होते हुए भी आरा लोकसभा से चुनाव हार गए।

उधर औरंगाबाद, बिहार के किसान वाराणसी- कोलकाता एक्सप्रेसवे में भूमि अधिग्रहण में अनियमितता को लेकर डेढ़ वर्षों से आंदोलनरत हैं। औरंगाबाद में पहले से किसानों की उत्तर कोयल नहर और हड़ियाही डैम को लेकर लड़ाई चल रही है, लिहाजा वहाँ के प्रबुद्ध किसानों ने इन सभी मुद्दों पर एक होकर राकेश टिकैत के नेतृत्व में जहां 2 बड़ा जनसभा किया, वहीं एक जनसभा पलामू प्रमंडल के मंडल डैम के पास आयोजित हुआ। इन आंदोलनों ने किसानों के पक्ष में एक आवाज को बुलंद किया और इसका असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा। इस सीट पर एनडीए के घटक दल भाजपा के सुशील सिंह को राजद के अभय कुशवाहा ने कड़ी शिकस्त दी। तीन चुनावों के बाद भाजपा उम्मीदवार सुशील सिंह यह सीट पहली बार हार गए।

उधर सासाराम और काराकाट लोकसभा में NH-19 और वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे सहित धान के मूल्य को लेकर किसान आंदोलन करते आये हैं। वहाँ भी राकेश टिकैत की अगुवाई में किसानों ने कई जनसभा की है और यहाँ भी एनडीए दोनों सीट पर हारी। सासाराम में कांग्रेस के मनोज कुमार ने भाजपा के शिवेश कुमार को हराया, तो काराकाट में किसान नेता और सीपीआई माले के उम्मीदवार राजाराम सिंह ने निर्दलीय पवन सिंह को हराया। दुर्गति का आलम यह रहा कि इस सीट पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा अर्थात एनडीए के उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा तीसरे स्थान पर चले गए।

उधर बक्सर से लोकसभा जीतकर आये सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार को किसानों के मुद्दे पर हमेशा घेरा है और उन्होंने किसानों के मुद्दे पर ही नीतीश कैबिनेट से पहले कृषि मंत्री के पद से इस्तीफा भी दिया था। सुधाकर सिंह राकेश टिकैत के साथ किसान आंदोलन की पिछले 2 वर्षों से बिहार में अगुवाई कर रहे हैं, लिहाजा यह देखना दिलचस्प होगा की आगे किसानों की लड़ाई किस करवट बैठती है।