सम्पादकीय – विजय कुमार श्रीवास्तव (वरिष्ठ पत्रकार)
पत्रकारिता का इतिहास बताता है कि सच हमेशा कठिन रास्ता मांगता है—और आज का समय इस बात को फिर साबित कर रहा है। खबरों का बाज़ार पहले कभी इतना भीड़भाड़ वाला नहीं था, लेकिन अजीब बात ये है कि इतनी भीड़ में भी सच सबसे अकेला दिखाई दे रहा है।
सोशल मीडिया की तेज़ रफ्तार, राजनीतिक बयानबाज़ी का शोर, और अफवाहों की आंधी—इसने असली पत्रकारिता की रीढ़ पर भारी दबाव डाल दिया है। और ऐसे समय में प्रेस की विश्वसनीयता किसी संपत्ति से कम नहीं—बल्कि यही प्रेस की एकमात्र पहचान है।
मिसइन्फॉर्मेशन की आग—और उसमें झुलसता सच
आज झूठ की रफ्तार सच से कई गुना तेज़ है।
कोई अफवाह वायरल होने में एक मिनट भी नहीं लेती, लेकिन सच्ची खबर को पाठक तक पहुँचने में सबसे बड़ी लड़ाई विश्वास की होती है।
मजेदार बात यह है कि झूठ को कोई प्रमाण नहीं चाहिए, सच को हजार सबूत भी कम पड़ते हैं।
ये चुनौती सिर्फ मीडिया के लिए नहीं—ये लोकतंत्र के लिए खतरा है। चुनाव, समाज, न्याय—सब इस आंधी में प्रभावित होते हैं।
पत्रकारिता—भीड़ में खड़ा वह अकेला आदमी
पत्रकार होना आज सिर्फ नौकरी नहीं,
यह जिम्मेदारी है कि
जब हर कोई शोर मचा रहा हो—
तब आप वह एक आवाज़ बनें जो
तथ्य पर खड़ी हो।
कई बार प्रशासन चुप,
कई बार सत्ता असहज,
कई बार समाचार कक्ष भी दबाव में।
लेकिन पत्रकारिता तभी जीवित रहती है
जब पत्रकार खड़ा रहता है—
सच के साथ,
किसी भी कीमत पर।
बड़ी खबरें हमेशा माइक से नहीं, नीयत से निकलती हैं
प्रेस की विश्वसनीयता बड़ी इमारतों में नहीं,
बल्कि उस ईमानदारी में बसती है
जिससे आप खबर लिखते हैं।
– तेज़ी से ज्यादा ज़रूरी है सही होना
– लोकप्रियता से ज्यादा ज़रूरी है पारदर्शिता
– और सबसे ज़रूरी है सत्ता से दूरी और जनता से नज़दीकी
आज मीडिया को यह तय करना होगा कि वह
खबर बेचने आया है, या खबर निभाने।
झूठ की भीड़ में सत्य की रक्षा—यही है आज का प्रेस दिवस
प्रेस दिवस सिर्फ तारीख का जश्न नहीं—
यह पत्रकारिता की आत्मा की याद है।
आज के दिन हमें खुद से पूछना चाहिए:
क्या हम सच के लिए उतने ही बेचैन हैं,
जितना दुनिया झूठ फैलाने के लिए?
अगर हम इस सवाल का जवाब ईमानदारी से दे पाए, तो ही प्रेस की विश्वसनीयता बच पाएगी।
अंत में…
दुनिया बदल रही है।
टेक्नोलॉजी तेज़ है।
अफवाहें खतरनाक हैं।
लेकिन सच की कीमत आज भी वही है—
और उसे बचाने की जिम्मेदारी
आज भी प्रेस की है।
हमारे हाथ में कलम है—
और कलम आज भी किसी भी झूठ से ज्यादा ताकतवर है,
अगर हम उसे सही दिशा में चलाएँ।
एक बार पुनः आप सभी मित्रों और पाठकों को राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
धन्यवाद!







