
बिहार की राजनीति में रविवार को अचानक हलचल मच गई। तेजप्रताप यादव ने NDA को नैतिक समर्थन देने का ऐलान कर सबको चौंका दिया, वहीं उनकी बहन रोहिणी आचार्य को जनशक्ति जनता दल (JJD) का राष्ट्रीय संरक्षक बनाए जाने की खबर ने राजनीतिक गलियारों में नया चक्रव्यूह खड़ा कर दिया है।
तेजप्रताप का बड़ा राजनीतिक दांव
सूत्रों के मुताबिक, तेजप्रताप यादव ने कहा कि उनका NDA को समर्थन देना “राजनीतिक मजबूरी और राज्य हित” दोनों के लिहाज से जरूरी है।
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य RJD या किसी अन्य दल को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि बिहार में सत्ता संतुलन बनाना है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि तेजप्रताप का यह कदम यदुवादी वोट बैंक में सेंध लगाने जैसा है, जिससे गठबंधन की नई रणनीति बन सकती है।
रोहिणी का JJD में प्रवेश
वहीं JJD की बैठक में यह प्रस्ताव पास किया गया कि रोहिणी आचार्य को राष्ट्रीय संरक्षक बनाया जाए।
तेजप्रताप ने सार्वजनिक रूप से कहा कि रोहिणी को पार्टी में “महत्वपूर्ण भूमिका” देने की योजना है।
इस कदम से पार्टी को एक राष्ट्रीय चेहरा मिलेगा और यह कदम युवा और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर असर डाल सकता है।
राजनीतिक उलझन और सवाल
लेकिन यह खबर सिर्फ इतना ही नहीं है — इससे राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े हो गए हैं:
1. क्या रोहिणी सच में JJD का सक्रिय हिस्सा बनेंगी, या सिर्फ संरक्षक की भूमिका निभाएंगी?
2. तेजप्रताप का NDA को समर्थन देने का कदम RJD पर कितना असर डालेगा?
3. क्या दोनों भाई-बहन मिलकर नया मोर्चा खड़ा करने की योजना बना रहे हैं?
4. और सबसे बड़ा सवाल — NDA गठबंधन में उनकी भूमिका कितनी मजबूत होगी, और मंत्री पदों के बंटवारे में उनका क्या योगदान होगा?
विश्लेषकों की राय
विश्लेषक मानते हैं कि तेजप्रताप और रोहिणी की यह चाल RJD के लिए बड़ा झटका हो सकती है।
NDA के लिए यह एक रणनीतिक लाभ भी साबित हो सकता है, क्योंकि गठबंधन में एक नया “यादव/पिछड़ा मोर्चा” तैयार हो सकता है।
हालांकि, यह भी साफ है कि अभी तक रोहिणी ने खुद NDA में शामिल होने का कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, इसलिए स्थिति पूरी तरह पक्की नहीं मानी जा सकती।
निष्कर्ष
तेजप्रताप यादव का NDA को समर्थन देना और रोहिणी का JJD में संरक्षक बनना बिहार की राजनीति में नई पहेली जैसा है।
जनता और राजनीतिक दल अब इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि इस कदम का RJD और NDA दोनों पर क्या असर होगा।
आने वाले दिनों में बिहार की राजनीतिक तस्वीर और भी उलझन भरी और रोमांचक हो सकती है।







