औरंगाबाद, बिहार:
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के आलोक में, पटना उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति द्वारा गठित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की एक टीम ने औरंगाबाद जिले के मण्डल कारा व उपकारा दाउदनगर का निरीक्षण किया। इस दौरान कैदियों को उनके विधिक अधिकारों की जानकारी दी गई और निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराई गई।
इस टीम में अधिवक्ता राजेश कुमार-1, अमित कुमार झा, पियुष कुमार पाण्डेय, मुस्कान सिंह और राजेश कुमार शामिल थे। उन्होंने कारा के प्रत्येक वार्ड का भ्रमण करते हुए सजायाफ्ता और विचाराधीन बंदियों से संपर्क किया। टीम ने विशेष रूप से ऐसे मामलों की पहचान की, जिनमें उच्च न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि बरकरार रखी गई है या छूट/शीघ्र रिहाई से इनकार किया गया है। साथ ही, जिनके आवेदन सीआरपीसी की धारा 436ए (अब भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत धारा 479) के तहत खारिज किए गए हैं।
टीम के अनुसार, कई कैदी ऐसे हैं जो सर्वोच्च न्यायालय में अपील या याचिका दायर करना चाहते हैं लेकिन संसाधनों की कमी के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे। ऐसे मामलों में उच्च गुणवत्ता वाली विधिक सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से यह पहल की गई है।
औरंगाबाद मण्डल कारा में इस समय कुल 998 कैदी हैं, जिनमें 33 महिलाएं हैं, जबकि दाउदनगर उपकारा में 135 बंदी हैं जिनमें 4 महिलाएं शामिल हैं। दाउदनगर में कोई भी सजायाफ्ता कैदी नहीं पाया गया।
टीम ने बताया कि यदि कोई कैदी अपने अधिवक्ता से असंतुष्ट है, तो वह अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त कर जेल प्रशासन के माध्यम से निःशुल्क विधिक सहायता के लिए आवेदन कर सकता है।
जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की कानूनी रक्षा परामर्शदाता प्रणाली से जुड़े अधिवक्ता—युगेश किशोर पाण्डेय, अभिनन्दन कुमार, मुकेश कुमार, रंधीर कुमार, चन्दन कुमार और सतीश कुमार स्नेही—ने टीम को हर संभव सहयोग प्रदान किया। काराधीक्षक डॉ. दीपक कुमार ने टीम को सभी वार्डों का निरीक्षण कराया।
टीम के सदस्यों ने निरीक्षण के दौरान कैदियों से मिले विवरणों के आधार पर डाटा तैयार किया है, जिससे उनकी विधिक सहायता के लिए अगली कार्रवाई की जाएगी।
उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति की यह पहल कैदियों के विधिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे न्याय तक सबकी पहुंच सुनिश्चित हो सके।