औरंगाबाद :
भारतमाला परियोजना के तहत वाराणसी से कोलकाता तक बन रहे ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे निर्माण के दौरान औरंगाबाद जिले के सोनबरसा गांव में सोमवार को बड़ा विवाद खड़ा हो गया। कुटुम्बा सीओ चंद्रप्रकाश द्वारा किसानों की जमीन पर जबरन कब्जा किए जाने की कोशिश के चलते किसानों और प्रशासन के बीच जमकर झड़प हुई।
स्थिति को बिगड़ता देख औरंगाबाद के एसडीएम संजय कुमार पांडेय व एडीएम भी मौके पर पहुंचे और किसानों से बातचीत कर सहयोग की अपील की। हालांकि, किसानों ने स्पष्ट कह दिया कि बिना मुआवजा मिले वे किसी भी कीमत पर अपनी जमीन नहीं छोड़ेंगे। आक्रोशित किसानों ने ऐलान किया कि प्रशासन को अगर सड़क बनानी है तो पहले उनकी लाशों पर डोजर चलाना होगा।

पिछले डेढ़-दो वर्षों से उचित मुआवजे की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं, पर जिला प्रशासन जबरन जमीन कब्जाने पर आमादा है। गत बृहस्पतिवार को भी नबीनगर सीओ निकहत प्रवीन पुलिस बल व कंपनी के मशीनों के साथ पचमों गांव पहुंची थीं, लेकिन भारी विरोध के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा था।
आज जैसे ही सोनबरसा गांव में जबरन भूमि अधिग्रहण शुरू हुआ, वैसे ही आसपास के गांवों—बलिया, महसू, डिहरी, एरका, करमडीह, जोड़ा—के किसान भी इकट्ठा हो गए। प्रदर्शनकारियों ने सीओ और एडीएम के तानाशाही रवैये के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
स्थानीय किसान नरेंद्र राय ने आरोप लगाया कि इक्का-दुक्का किसानों को ही मुआवजा मिला है, जबकि प्रशासन जबरन कब्जा कर रही है। भारतीय किसान यूनियन के जिला संयोजक वशिष्ठ प्रसाद सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि बिना मुआवजा भूमि अधिग्रहण नहीं हो सकता, लेकिन प्रशासन पुलिसिया जोर के दम पर किसानों की जमीन हड़प रहा है।
साया गांव के किसान अवधेश सिंह ने आंदोलन को तेज करने की अपील करते हुए यहां तक कह दिया कि उचित मुआवजा नहीं मिलने पर किसान आत्मदाह जैसे कदम उठाने को मजबूर होंगे। भाकियू सदस्य राजकुमार सिंह ने सवाल उठाया कि पोला डिहरी गांव में भूमि अधिग्रहण का दर ३०६२० रुपये प्रति डिसमिल तय किया गया जबकि सोनबरसा में मात्र ८००० रुपये प्रति डिसमिल क्यों तय हुआ?
मौके पर पप्पू तिवारी, विजय तिवारी, चंदन तिवारी, मनोज सिंह, अभय सिंह समेत सैकड़ों किसान मौजूद रहे और आंदोलन को निर्णायक लड़ाई में बदलने का ऐलान किया।