“हम तो टोकेंगे साहब” रोज़ का जाम, रोज़ का तनाव—औरंगाबाद में ट्रैफिक व्यवस्था  तोड़ने लगी दम, क्या प्रशासन अब स्थायी समाधान देगा?

औरंगाबाद शहर की सड़कों पर जाम अब किसी त्योहार या भीड़भाड़ वाले दिन की समस्या नहीं, रोज़ का दर्द बन चुका है। हालात ऐसे कि रमेश चौक से धर्मशाला मोड़—जिसकी दूरी मिनटों की है—उसे पार करने में आधा घंटा या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है। यह समस्या अब शहरवासियों के धैर्य को परखने लगी है।

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सड़कें आधी दुकानों में बदल चुकी हैं। सब्ज़ी, फल और फुटपाथी दुकानें सड़कों पर ही सज जाती हैं—और इनके बीच ऑटो चालकों की मनमानी अलग। लेन का कोई नियम नहीं, जहां जगह मिली वहीं गाड़ी रोकी, जहां मन हुआ वहीं से ओवरटेक। नतीजा—पूरा रास्ता घंटों तक ठप।

सवाल उठता है कि क्या प्रशासन को यह रोज़ का जाम दिखाई नहीं देता?
कभी-कभार पहल होती है, दुकानों पर कार्रवाई भी होती है, लेकिन अगले ही दिन सबकुछ पहले जैसा—सड़क फिर से बाजार, और बाजार फिर से जाम।

शहर की जनता अब एक सख्त, टिकाऊ और ज़मीनी समाधान चाहती है—
✔ फुटपाथों को खाली कराया जाए
✔ ऑटो स्टैंड की स्पष्ट व्यवस्था बने
✔ नियमित निगरानी हो, सिर्फ एक दिन की कार्रवाई नहीं

प्रशासन से निवेदन नहीं, अब सवाल है—
क्या औरंगाबाद की सड़कें कभी वाहनों के लिए खाली होंगी, या हमेशा की तरह फिर कल भी जाम ही मिलेगा?