रिपोर्ट: फ्रेंड्स मीडिया | औरंगाबाद, बिहार :
जिले में एक कथित फर्जी आईपीएस अधिकारी के खुलासे ने पुलिस व्यवस्था की साख को झटका दे दिया है। यह व्यक्ति लंबे समय से खुद को आईपीएस बताकर न केवल सरकारी स्तर पर घुसपैठ करता रहा, बल्कि कई जगहों पर असली पुलिस कर्मियों को भी अपने जाल में उलझा गया।
जांच में बड़ा खुलासा
सूत्रों के अनुसार, यह व्यक्ति कई महीनों से पुलिस और प्रशासनिक हलकों में सक्रिय था।
वह पहचान पत्र, विजिटिंग कार्ड और वाहन पर “IPS” का प्रयोग करता था। कई मौकों पर उसे सुरक्षा कर्मी और वाहन सुविधा तक मुहैया कराई गई, जिससे यह सवाल उठता है कि सत्यापन की प्रक्रिया आखिर कहां कमजोर पड़ी?
महिला पुलिसकर्मियों को भी बनाया निशाना
स्थानीय सूत्रों का कहना है कि आरोपी ने पहले भी कुछ महिला पुलिसकर्मियों को विश्वास में लेकर ठगी की घटनाएं की हैं। हालांकि पुलिस विभाग ने इस पहलू पर आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन आंतरिक जांच टीम इस दिशा में भी दस्तावेज़ और साक्ष्य खंगाल रही है।वैसे उक्त व्यक्ति की पहचान भोजपुर निवासी आशीष कुमार के रूप में हुई है।
सिस्टम पर सवाल
यह मामला न केवल ठगी का, बल्कि सिस्टम में सेंधमारी की गंभीर घटना के रूप में देखा जा रहा है। कैसे कोई व्यक्ति बिना बैकग्राउंड वेरिफिकेशन के इतने लंबे समय तक “उच्च पद” का दिखावा कर सकता है? यह सवाल अब पूरे प्रशासनिक तंत्र पर उंगलियां उठा रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों ने आंतरिक जांच शुरू कर दी है। सूत्रों की मानें तो कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका भी जांच के दायरे में है।
जनता में चर्चा
यह खबर सामने आते ही औरंगाबाद जिले में चर्चा का माहौल है। लोगों का कहना है —
“जब पुलिस सिस्टम को कोई फर्जी अफसर धोखा दे सकता है, तो आम जनता किस पर भरोसा करे?”
सोशल मीडिया पर यह खबर “पुलिस तंत्र की सबसे बड़ी चूक” के रूप में चर्चा में है।
फ्रेंड्स मीडिया का सवाल
क्या विभाग ने पहचान सत्यापन की उचित प्रक्रिया अपनाई थी? इस व्यक्ति को सुरक्षा और वाहन सुविधा किसके आदेश पर मिली?
क्या अब लापरवाही करने वालों पर कार्रवाई तय होगी?
यह घटना सिर्फ एक ठगी नहीं — यह सिस्टम में भरोसे की दीवार में पड़ी दरार है। फ्रेंड्स मीडिया इस पूरे मामले की परतें खोलने के लिए लगातार जांच में जुटा है।
अगली अपडेट – जल्द, सिर्फ फ्रेंड्स मीडिया पर।







