FRIENDS MEDIA , BIHAR DESK
स्वास्थ्य सेवा को आमजन के लिए सुलभ एवं उत्कृष्ट बनाने के साथ-साथ संरचनात्मक सुधार की दिशा में सरकार द्वारा निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं. इन प्रयासों के तहत संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, परिवार नियोजन कार्यक्रम को लागू कराना, स्वास्थ्य उप केंद्रों, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, अनुमंडलीय एवं जिला अस्पतालों का उन्नयन या नव निर्माण कराकर कार्यशील बनाना, मुफ्त दवा की व्यवस्था, आधुनिक उपकरणों की व्यवस्था का कार्य किया जा रहा है।
लोक निजी साझेदारी के तहत पैथोलॉजिकल एवं रेडियोलॉजिकल जांच की सुविधा ग्रामीणों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. जिले के सदर अस्पताल एवं अनुमंडलीय अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सेवा दी जा रही है. जिले में सदर अस्पताल स्तर पर डायलिसिस एव सीटी स्कैन की व्यवस्था कराई गई है. सदर अस्पताल, औरंगाबाद में इंडियन रेड क्रॉस की सहायता से रक्त अधिकोष का सफलतापूर्वक संचालन कराया जा रहा है. गरीबों को घर बैठे चिकित्सकीय परामर्श की व्यवस्था टेलीमेडिसिन के माध्यम से कराई जा रही है. सुदूरवर्ती लाभार्थियों को स्वास्थ्य सेवा के लिए अस्पताल में पहुंच सुनिश्चित कराने हेतु डायल 102 के तहत एंबुलेंस की सेवा उपलब्ध कराई जा रही है. यह सभी प्रयास सुगम एवं उत्कृष्ट स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है.
महत्वपूर्ण कार्यक्रम निम्नवत हैं-
(1) प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान : प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान भारत सरकार की एक नई पहल है, जिसके तहत प्रत्येक माह की निश्चित नवीं तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं को व्यापक और गुणवत्तायुक्त प्रसव पूर्व देखभाल प्रदान किया जाता है. हसके तहत गर्भवती महिलाओं को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर उनकी गर्भावस्था के दूसरी और तीसरी तिमाही की अवधि (गर्भावस्था के 4 महीने के बाद) के दौरान प्रसव पूर्व देखभाल सेवाओं का न्यूनतम पैकेज प्रदान किया जाता है. इस कार्यक्रम की प्रमुख विशेषता यह हैं, कि इस दिवस पर गर्भवती की जांच एवं सलाह चिकित्सा अधिकारी के द्वारा दी जाती है. इस कार्यक्रम की शुरुआत इस आधार पर की गयी है, कि यदि भारत में हर एक गर्भवती महिला का चिकित्सा अधिकारी द्वारा परीक्षण एवं पीएमएसएमए के दौरान उचित तरीकें से कम से कम एक बार जांच की जाएँ तथा इस अभियान का उचित पालन किया जाएँ, तो यह अभियान हमारे देश में होने वाली मातृ मृत्यु की संख्या को कम करने में महत्वपूर्ण एवं निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. जिले में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के दिन लाभार्थियों को मुफ्त जलपान की व्यवस्था की जाती है.
(2) जननी एवं बाल सुरक्षा योजना : इस योजना अंतर्गत मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने हेतु संस्थागत एवं सुरक्षित प्रसव को प्रोत्साहित किया जा रहा है. संस्थागत प्रसव के लिए गर्भवती माताओं एवं आशा कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन राशि का भुगतान करने का प्रावधान है. ग्रामीण महिलाओं को ₹1400 एवं शहरी महिलाओं को ₹1000 प्रोत्साहन राशि दी जाती है. गर्भवती महिला को संस्थागत प्रसव के लिए प्रोत्साहित करने हेतु आशा कार्यकर्ता को ग्रामीण क्षेत्र में ₹600 तथा शहरी क्षेत्र में ₹400 का भुगतान किया जाता है. इस योजना के क्रियान्वयन से संस्थागत प्रसव न सिर्फ बढ़ा है बल्कि मातृत्व मृत्यु में भी कमी आई है.
(3) नियमित प्रतिरक्षण कार्यक्रम: राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रत्येक बुधवार एवं आंगनबाड़ी केंद्रों पर प्रत्येक शुक्रवार को नियमित टीकाकरण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. इसके अतिरिक्त सदर अस्पताल, अनुमंडलीय अस्पताल एवं सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रतिदिन टीकाकरण किया जाता है. नियमित टीकाकरण कार्यक्रम के क्रियान्वयन से पूर्ण प्रतिरक्षित बच्चों के प्रतिशत में गुणात्मक वृद्धि हुई है साथ ही साथ बाल रोगों में निश्चित रूप से कमी आई है.
(4) एसएनसीयू: शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट या विशेष नवजात देखभाल इकाई (एसएनसीयू) का संचालन जिला स्तर पर सदर अस्पताल औरंगाबाद में किया जा रहा है. एसएनसीयू में गंभीर रूप से बीमार नवजात को 24 घंटे सभी सुविधाएं मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है. इलाज के साथ-साथ माताओं को सहित बच्चों को ढंग से रखने के तरीकों के बारे में भी बताया जाता है. एसएनसीयू कार्यक्रम के अंतर्गत 28 दिन के बीमार नवजात की देखभाल की जाती है. वैसे बच्चे जो जन्म के समय कम वजन के होते हैं, जिनका जन्म समय से पहले हो गया होता है, प्रसव के दौरान किसी प्रकार के चोट लगने से बच्चा दूध नहीं पी रहा होता है, बच्चे को जन्म लेने के बाद सांस लेने में परेशानी होती है, झटके आते हैं तो ऐसे बच्चों को एसएनसीयू के अंतर्गत मुफ्त चिकित्सा व्यवस्था दी जाती है. यह सुविधा अस्पताल में जन्म लेने वाले बच्चों के साथ साथ अन्य अस्पतालों में जन्म लेने वाले बच्चों को भी दी जाती है. इस व्यवस्था के संचालन से नवजात मृत्यु में कमी आ रही है तथा बच्चे अपंगता से बच रहे हैं.