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औरंगाबाद : एक तरफ सूबे के वरीय पुलिस पदाधिकारी लगातार पुलिस पदाधिकारियों के साथ बैठक कर सुरक्षा व न्याय की बात करते हैं वहीं दूसरी तरफ किसी कानूनी उलझन में फंसने के बाद लोगों को न्यायालय पर पूर्ण भरोसा होता है। परन्तु पुलिस विभाग के कुछ लापरवाह पदाधिकारियों की वजह से न तो सिर्फ पूरे विभाग को खरी-खोटी सुनने को मिलती है बल्कि लोगों को सही समय पर न्याय भी नही मिल पाता है। इस बात पर न्यायालय के न्यायाधीश भी नाराजगी जाहिर करने में कोई कसर नही छोड़ते । यही कारण है कि हर दिन जिले के विभिन्न थानाध्यक्षों को न्यायालय में फटकार तक सुनना पड़ता है।
गौरतलब है कि मंगलवार को व्यवहार न्यायालय में एडिजे सात सुनील कुमार सिंह ने पौथु थाना कांड संख्या 81/21 सत्रवाद संख्या 191/22 में सुनवाई करते हुए एक प्रतिवेदन लम्बित रहने पर पौथु थाना प्रभारी को न्यायिक आदेश के अवहेलना के दोषी मानते हुए पांच हजार रुपए वेतन कटौती का आदेश दिया है ।अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि इस वाद में जप्त बाईक और मोबाइल के विमुक्ति हेतु अगस्त 2022 से प्रतिवेदन न्यायालय में लम्बित है मांग पत्र 31-08-22 को भेजी गयी थी ।कारण पृच्छा 30/01/23 को भेजी गई थी, परन्तु आज तक न्यायालय में प्रतिवेदन अप्राप्त है।वेतन कटौती के आदेश का कॉपी आरक्षी अधीक्षक एवं कोषागार पदाधिकारी औरंगाबाद को भेजा जा रहा है।
बता दें की बीते कल यानी सोमवार को भी एडिजे सात सुनील कुमार सिंह ने देव थाना के थाना प्रभारी को शोकोज किया था और थाना प्रभारी को न्यायालय से आदेश दिया गया है कि स्पष्टीकरण सदेह उपस्थित होकर एक सप्ताह के अंदर दे कि क्यों नहीं न्यायिक आदेश के अवहेलना करने पर वरीय पदाधिकारियों को लिखा जाएं। वहीं एक दुसरे मामले के सुनवाई के दौरान नवीनगर थाना प्रभारी को भी शोकोज किया गया है। एक सप्ताह के अंदर सदेह उपस्थित होकर स्पष्टीकरण दे कि किन परिस्थितियों में न्यायालय के आदेश का अवहेलना हुई है।
वहीं नगर थाना प्रभारी को भी एक पत्र लिखकर कहा गया है कि एक सप्ताह के अंदर नगर थाना कांड संख्या 309/22 में वाद दैनिकी प्रस्तुत करें क्योंकि वाद दैनिकी की मांग 27/02/23 को किया गया था और स्मारपत्र 20/03/23 को भेजा गया था।वाद में जमानत याचिका पर सुनवाई लंबित है।
ये सिर्फ उदाहरण स्वरूप हाल-फिलहाल के मामले हैं । ऐसी अनेको मामले विगत दिनों आये जिसपर न्यायालय ने सख्त रूप अपनाया और प्रतिकूल कार्यवाई की है। पुलिस पदाधिकारीयों के लापरवाह रवैया से देखा गया है कि समय पर प्रतिवेदन न्यायालय में प्रस्तुत नही करने पर न्यायालय गम्भीर अपराधों के अभियुक्तों को भी जमानत दे देता क्योकि जमानत निरस्त और खारिज करने का न्यायालय के पास कोई ठोस साक्ष्य नही रहता जिससे पीड़ित पक्ष का पुलिस प्रशासन से विश्वास कम हो जाता और पूरी पुलिस महकमा की किरकिरी हो जाती।