जेल की सलाखों से आजादी तक : विधिक सेवा प्राधिकार की जीत -मुफ्त कानूनी मदद से दो साल बाद अभियुक्त को  मिली आजादी

औरंगाबाद/बिहार
“न्याय सबके लिए है, चाहे वह किसी वर्ग, जाति या स्थिति में हो।” — इस भाव को साकार करते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकार के माध्यम से न्याय के लिए जूझ रहे एक गरीब अभियुक्त को दो वर्षों बाद आखिरकार रिहाई मिल गई।

विशेष पोक्सो न्यायालय में दर्ज एक गंभीर मामले में अभियुक्त अनील चौधरी (पिता: सूरज चौधरी) बिना अधिवक्ता के न्यायिक प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पा रहे थे। लंबे समय तक कारा में बंद रहने के बावजूद उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा था। लेकिन मुफ्त विधिक प्रतिरक्षा अधिवक्ता प्रणाली ने उनकी जिंदगी में उम्मीद की नई किरण जगाई।

प्रकरण ओबरा थाना कांड संख्या 281/23 से जुड़ा था। न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उप प्रमुख विधिक प्रतिरक्षा अधिवक्ता  अभिनंदन कुमार को बचाव हेतु नियुक्त किया। उनके साथ सहायक अधिवक्ता चंदन कुमार मिश्रा ने भी अहम भूमिका निभाई। कुल पाँच गवाहों की गवाही और सभी आवश्यक विधिक प्रक्रियाओं के बाद न्यायालय ने अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया।

जिला विधिक सेवा प्राधिकार की सचिव तान्या पटेल ने बताया कि संस्था के माध्यम से अब तक कई बंदियों को न्यायिक मदद मिली है। यह संस्था उन लोगों के लिए एक आशा का केंद्र बन चुकी है, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं लेकिन न्याय की आस में जी रहे हैं।

रिहा होने के बाद भावुक अनील चौधरी ने कहा,
“अगर ये संस्था नहीं होती, तो न जाने हमें कितने दिन और जेल में बिताने पड़ते। गरीबों के लिए यह जीवनदायिनी है।”

यह मामला न सिर्फ एक व्यक्ति की रिहाई की कहानी है, बल्कि न्याय प्रणाली में सबकी समान भागीदारी सुनिश्चित करने की एक मिसाल भी है।