बिहार जल संकट: आसमान से आफत, ज़मीन पर त्राहिमाम — जब नदियाँ बेकाबू, सरकार बेबस और जनजीवन बेहाल

✍️ रिपोर्ट: विजय श्रीवास्तव, फ्रेंड्स मीडिया: पटना/बिहार


बिहार इन दिनों प्रकृति के प्रचंड प्रहार और व्यवस्था की जर्जरता के बीच फंसा हुआ राज्य नज़र आ रहा है। हाल की लगातार बारिश ने न सिर्फ मौसम के रिकॉर्ड तोड़े, बल्कि इंसानी जीवन, सरकारी व्यवस्थाओं और भावी रणनीतियों की पोल भी खोल दी है।

इस विशेष रिपोर्ट में हम बारिश से हुई क्षति को पांच व्यापक दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करते हैं—प्राकृतिक, मानविक, भौतिक, प्रशासनिक और राजनीतिक।

1. प्राकृतिक प्रकोप: जब नदियाँ दहाड़ उठीं

गंगा, कोसी, बागमती, पुनपुन, गंडक जैसी नदियाँ उफान पर हैं। अकेले पटना में गंगा नदी खतरे की सीमा से आधा मीटर ऊपर बह रही है, वहीं कोसी से छोड़ा गया 1.7 लाख क्यूसेक्स पानी सीमांचल को डुबाने को आतुर है। बाढ़ की चपेट में अब तक 12 जिले आ चुके हैं।

“हर साल यही होता है… नदियाँ बहती नहीं, हम बह जाते हैं,” — कहता है एक बाढ़ पीड़ित ग्रामीण, सहरसा से।

2. मानविक आपदा: बिजली गिरी, ज़िंदगियाँ लुटीं

बिजली गिरने से पिछले दो सप्ताह में 50 से अधिक मौतें हो चुकी हैं। अप्रैल से अब तक यह संख्या 100 के करीब पहुंच चुकी है। खेतों में काम कर रहे किसान, खुले में सोते ग्रामीण और बच्चों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है।

सरकार ने ₹4 लाख मुआवजा की घोषणा की है, पर ज़िंदगियों का मूल्य इससे कहां पूरा होता है?

3. भौतिक तबाही: जलभराव से घर, सड़क और पुल सब बेहाल

पटना से पूर्णिया, जमुई से बक्सर तक हर शहर-कस्बा जलजमाव से परेशान है। राजधानी में राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, अशोक नगर और सचिवालय इलाके जलमग्न हैं। स्कूलों में पानी, अस्पतालों में सीवेज, और विधानसभा में बारिश — ये सब अब बिहार की नई पहचान बनते जा रहे हैं।

पुल टूटते हैं, सड़कों पर नाव चलती है, और सिस्टम देखता रह जाता है।

4. कृषि का संकट: धान को पानी नहीं, खेतों को बाढ़

किसानों की कहानी सबसे अलग है। जून-जुलाई में जहां सूखा पड़ा, वहीं अगस्त में हुई झमाझम बारिश ने खेतों को जलकुंड बना डाला। बीज बर्बाद, खेत जलमग्न, और खरीफ की पूरी उम्मीद खतरे में।

“या तो पानी नहीं, या इतना कि फसल डूब जाए…” – कहते हैं एक किसान, मधुबनी से।

5. प्रशासनिक और राजनीतिक परिक्षण: फेल होते इंतजाम

NDRF की तैनाती, जलनिकासी की मशीनें, और सड़क मरम्मत के आदेश— ये सब तब सामने आए जब हालत बेकाबू हो चुके थे। सड़कों पर राहत से ज्यादा बयानबाज़ी दौड़ रही है।

राज्य सरकार ने हाई लेवल बैठक की, केंद्र सरकार ने मौसम विभाग को सतर्क किया — लेकिन नतीजा? ज़मीनी हालात जस के तस हैं।

निष्कर्ष: यह सिर्फ बारिश नहीं, बिहार के सिस्टम की पोलपट्टी है

यह सवाल महज मौसम का नहीं है, यह सवाल है योजना विहीनता, अविकसित इंफ्रास्ट्रक्चर, और मानव जीवन की प्राथमिकताओं का।

जब हर साल बाढ़ आती है, तो हर साल क्यों बहते हैं लोग?

क्या बिहार को अब भी सिर्फ बारिश की रिपोर्ट चाहिए, या एक समग्र पुनर्निर्माण योजना?


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