औरंगाबाद – विजय कुमार श्रीवास्तव
बिहार के विश्वविख्यात देव सूर्य मंदिर में इस वर्ष कार्तिक छठ महापर्व पर आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए 12 लाख से अधिक व्रती और श्रद्धालु मंदिर प्रांगण और सूर्यकुंड तालाब में उमड़ पड़े। पूरे देव नगरी में श्रद्धा, भक्ति और लोकसंस्कृति की अनोखी झलक नजर आई।
आस्था का समुद्र, देव में नहीं थमा सैलाब
शनिवार की शाम से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी थी। दूर-दराज़ राज्यों — उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, बंगाल और नेपाल तक से श्रद्धालु पहुँचे। स्थानीय और बाहरी श्रद्धालुओं की आवाजाही इतनी अधिक थी कि शहर की सड़कों पर रौनक मेले जैसी रही। उगते सूर्य को अर्घ्य देने का सिलसिला भोर से शुरू होकर घंटों तक चलता रहा।
सूर्य मंदिर की महिमा
देव का सूर्य मंदिर भारत के प्राचीनतम सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर पश्चिमाभिमुख है — जो विश्व में अत्यंत दुर्लभ है। मान्यता है कि यहाँ भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के बाद सूर्य देव की स्थापना की थी। हर वर्ष छठ पर्व पर यहाँ व्रतियों की मन्नतें पूरी होती हैं, इसलिए लाखों श्रद्धालु यहाँ दर्शन हेतु आते हैं।
प्रशासन की भूमिका
आस्था के इस महासागर को संभालने के लिए जिला प्रशासन ने विशेष इंतजाम किए।
2,000 से अधिक पुलिसकर्मी, होमगार्ड और एनडीआरएफ की टीमें तैनात रहीं।
ड्रोन कैमरों से निगरानी, बैरिकेडिंग और कंट्रोल रूम की व्यवस्था की गई।
व्रतियों की सुरक्षा के लिए सूर्यकुंड के चारों ओर लाइटिंग, साफ-सफाई, मेडिकल कैंप और पेयजल की समुचित व्यवस्था रही।
जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री एवं पुलिस अधीक्षक अम्बरीष्ट राहुल स्वयं स्थल पर मौजूद रहे और व्यवस्थाओं की लगातार समीक्षा करते रहे
लोकभावना और परंपरा
छठ पूजा यहाँ सिर्फ पर्व नहीं, बल्कि लोकधर्म का उत्सव है। महिलाएं पारंपरिक गीतों के साथ पूजा करती हैं, बच्चे ‘कोसी भरना’ और ‘अरघिया गीत’ गाते हैं। हर तरफ “छठ मइया के जयघोष” से गूंजता माहौल श्रद्धा और संस्कृति का प्रतीक बना रहा।
“देव” बना श्रद्धा का संगम स्थल
देव सूर्य मंदिर में उमड़ी भीड़ ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बिहार की आस्था, अनुशासन और लोकसंस्कृति का कोई जोड़ नहीं। लाखों श्रद्धालुओं के सामूहिक अर्घ्य से पूरा देव नगरी सूर्य भक्ति के रंग में रंग गया।







