
बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का तूफ़ानी प्रचार आखिरकार थम गया है। उम्मीदवारों की रैलियाँ, जनसभाएँ और रोड शो अब मौन हो चुके हैं—लेकिन राजनीतिक हलचल अभी भी चरम पर है। अब सारी निगाहें 14 नवंबर को होने वाले मतदान और मतदाताओं की उस “आवाज़” पर टिकी हैं, जो आने वाले पाँच साल की दिशा तय करेगी।
दूसरे चरण में औरंगाबाद समेत आसपास की सीटों पर चुनावी प्रचार का मुकाबला बेहद दिलचस्प रहा। बड़े नेताओं से लेकर स्थानीय प्रत्याशियों तक, सभी ने अंतिम समय तक जनता को साधने की पूरी कोशिश की। विकास, बेरोज़गारी, बदहाल सड़कें, स्वास्थ्य की स्थिति और युवाओं का भविष्य—ये वो मुद्दे रहे जिन पर सबसे ज़्यादा बहस हुई।

अब चुनाव आयोग के “मौन अवधि” लागू होने के बाद प्रत्याशियों की गतिविधियाँ सीमित हो चुकी हैं, लेकिन मतदाताओं में उत्साह कम नहीं हुआ है। गाँव-गाँव, चौक-चौराहों और सोशल मीडिया पर चर्चाएँ अब भी ज़ोर पर हैं—कौन जीतेगा? किसकी किस्मत खुलेगी? किसकी हार से राजनीतिक भूचाल आएगा?
14 नवंबर को होने वाली वोटिंग को लेकर प्रशासन भी पूरी तरह अलर्ट मोड में है। सुरक्षा बलों की तैनाती, पिंक बूथ की तैयारी, दिव्यांग मतदाताओं के लिए विशेष व्यवस्था—सब कुछ अंतिम चरण में है।
लोगों की एक ही अपील है—
“मतदान अवश्य करें, क्योंकि आपकी एक आवाज़ बदल सकती है बिहार की राजनीति का पूरा समीकरण।”








