विजय कुमार श्रीवास्तव
औरंगाबाद (बिहार)। आज जिन बच्चों के हाथों में पेंसिल व बुक होनी चाहिये उनके हाथों में नशीले पदार्थ देखने को मिल रहे हैं जो समाज ही नही बल्कि देश के लिए भी खौफनाक साबित हो सकता है। हालांकि बच्चे देश के भविष्य होते हैं इसी कहावत पर देश आगे बढ़ रहा है , परन्तु औरंगाबाद जिला मुख्यालय की सच्चाई जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे। नगर थाना क्षेत्र के विभिन्न मुहल्ले व चौक – चौराहे पर दर्जनों बच्चे सुलेशन सूंघते , गांजा का सेवन करते नजर आते है। इन बच्चों की उम्र दस से बारह वर्ष के बीच होती है। शिक्षा की किरण से दूर ये बच्चे पेट की भूख मिटाने के लिए आम लोगों द्वारा फेंके गए कचरों में अपनी जीवन तलाशते हैं। इन कचरों से चुने गए बोतले , प्लास्टिक व अन्य सामानों को बेच के न सिर्फ अपने पेट की भूख मिटाते हैं बल्कि नशीले पदार्थों का भी इंतजाम कर लेते हैं। कंपकपी ठंड में भी इनके बदन पर पूरे कपड़े नही होते हैं ,लेकिन हाथों में पॉलीथिन या रुमाल जरूर होते हैं जिनमे सुलेशन डालकर सूंघते हैं।
अपराध की राह पकड़ रहे हैं मासूम बच्चे-
ऐसे बच्चे अपनी पेट की भूख मिटाने व नशे के लिए किसी भी हद से गुजर सकते हैं। जिस उम्र उन्हें पढ़ाई करनी चाहिए उस उम्र में वे अपराधों की ट्रेनिग ले रहे हैं। जिस तरह से कम उम्र के बच्चों में नशे की लत लग रही है उसी तरह से अपराध का ग्राफ भी बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि छोटे से बड़े अपराध में किशोर भी शामिल हो रहे है। हाल ही में शहर में हुए छोटी- बड़ी चोरी , छिनतई की घटनाओं में शामिल कई किशोरों को पुलिस ने पकड़कर बाल सुधार गृह भेजा है। ऐसे में जिला प्रशासन को कड़ी निगरानी रखने की बेहद आवश्यकता है नही तो आने वाले समय मे बड़ी खमियाजा से इनकार नही किया जा सकता है। हालांकि जिला प्रशासन , बाल समिति व अन्य संस्थाओं द्वारा समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाता है पर उसका कोई असर साबित नही हो रही है।
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