औरंगाबाद/बिहार
रविवार का दिन औरंगाबाद के लिए केवल एक राजनीतिक सभा नहीं, बल्कि लोकतंत्र के भविष्य की कसौटी साबित हुआ। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने महागठबंधन की वोटर अधिकार रैली में मंच से जो आरोप लगाए, उसने न सिर्फ चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए बल्कि सत्ता और संवैधानिक संस्थाओं के गठजोड़ की परतें भी उधेड़ दीं।
राहुल गांधी ने भीड़ के सामने ऐलान किया—“बिहार अब वोट चोरी बर्दाश्त नहीं करेगा।” उनका सीधा आरोप था कि महाराष्ट्र से लेकर बेंगलुरु तक एक करोड़ से अधिक फर्जी वोटर खड़े किए गए और चुनाव परिणामों की दिशा पलट दी गई। सवाल यह है कि जब चुनाव आयोग ही पारदर्शिता पर खरा नहीं उतर पा रहा तो लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा?
सभा में राहुल ने संविधान और अंबेडकर का हवाला देकर चेतावनी दी कि गरीब और वंचित वर्ग के पास सिर्फ एक ताकत है—वोट—और जब वही छिन जाएगा, तो यह लोकतंत्र नहीं रहेगा। उनका सबसे बड़ा हमला उस कानून पर था, जिसमें चुनाव आयोग के अधिकारियों को मुकदमे से छूट दी गई। राहुल बोले—“यह छूट इसलिए, ताकि सत्ता और आयोग मिलकर खुलेआम वोट चुरा सकें।”
तेजस्वी यादव ने और तीखा तंज कसा। उन्होंने नीतीश कुमार को “अचेत मुख्यमंत्री” बताते हुए दावा किया कि भाजपा चुनाव बाद उन्हें किनारे कर देगी। तेजस्वी ने कहा, “बिहार की जनता अब डरने वाली नहीं है, इस बार वोट चोरों को भगाकर नई सरकार बनाएगी।”
वीआईपी प्रमुख मुकेश साहनी और भाकपा-माले के दीपांकर भट्टाचार्य ने भी मंच से एक ही स्वर में कहा कि यह केवल सत्ता बनाम विपक्ष की लड़ाई नहीं, बल्कि संविधान बचाने की जंग है।
भीषण गर्मी और उमस के बीच उमड़ी भारी भीड़ ने यह साफ कर दिया कि यह रैली महज चुनावी रस्म नहीं थी। यह लोकतंत्र के सवाल पर जनता की हुंकार थी। औरंगाबाद से उठी यह गूंज आने वाले चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती बन सकती है—क्योंकि यहां बात अब “सरकार बनाने” की नहीं, बल्कि “वोट बचाने” की है।