रांची/नई दिल्ली: झारखंड की मिट्टी आज गमगीन है। उस आवाज़ का आज अंत हो गया, जो जंगल, ज़मीन और जनजातियों के अधिकार के लिए दहाड़ बनकर उठी थी। झारखंड आंदोलन के अग्रदूत, आदिवासी अस्मिता के प्रतीक और तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे शिबू सोरेन का आज दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे और लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे।
‘गुरुजी’ के नाम से लोकप्रिय शिबू सोरेन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक जनआंदोलन का चेहरा थे। उन्होंने वो लड़ाई लड़ी, जिसे कमजोरों ने सदियों से सिर्फ सहा था। झारखंड राज्य के गठन में उनका योगदान ऐसा रहा जिसे इतिहास कभी भुला नहीं सकता।
एक संघर्षशील जीवन का अंत
शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन हमेशा सत्ता से टकराव और जनता के हक के लिए संघर्ष का प्रतीक रहा। वे कई बार संसद पहुंचे, केंद्रीय मंत्री बने, लेकिन उनकी आत्मा हमेशा झारखंड की पहाड़ियों, जंगलों और खेतों में बसती रही।
तीन बार मुख्यमंत्री, लेकिन हमेशा जननेता
शिबू सोरेन ने तीन बार झारखंड की कमान संभाली, लेकिन कभी सत्ता के मोह में अंधे नहीं हुए। उन्होंने आदिवासी समाज को आवाज़ दी, जल-जंगल-जमीन की लड़ाई को संसद के गलियारों तक पहुँचाया।
श्रद्धांजलि की लहर
उनके निधन की खबर फैलते ही झारखंड से लेकर दिल्ली तक शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री, विपक्षी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और आम जनता सभी ‘गुरुजी’ को अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
“गुरुजी का जाना सिर्फ एक नेता का जाना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है।”— मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
अंतिम दर्शन व अंतिम संस्कार
सूत्रों के अनुसार, उनका पार्थिव शरीर आज रात रांची लाया जाएगा और कल राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।
गुरुजी अमर रहें
शिबू सोरेन भले आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विचारधारा, उनकी लड़ाई और उनका आत्मबल आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। झारखंड की आत्मा में ‘गुरुजी’ हमेशा जीवित रहेंगे।
🕯️ भावभीनी श्रद्धांजलि।







