AURANGABAD : आधा दर्जन लापरवाह पुलिस पदाधिकारीयों के वेतन पर न्यायालय ने लगाई रोक

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किशोर न्याय परिषद औरंगाबाद के प्रधान दंडाधिकारी मनीष कुमार पाण्डेय ने शुक्रवार को जिले के छः पुलिस अवर निरीक्षकों का वेतन रोकने का आदेश पुलिस अधीक्षक और कोषागार पदाधिकारी को दिया है। पहला नगर थाना कांड संख्या 354/21 में कांड दैनिकी और आरोप पत्र प्रस्तुत नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी पुलिस अवर निरीक्षक शिशुपाल का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है।
दुसरा, कुटुंबा थाना कांड संख्या 11/20 में कांड दैनिकी और आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी पुअनि राजेश्वर प्रसाद और अनुसंधानकर्ता श्रीपति मिश्र का वेतन तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दिया गया है। तीसरा, अम्बा थाना कांड संख्या 53/22 में कांड दैनिकी और आरोप पत्र दाखिल नहीं करने के कारण बाल कल्याण पुलिस अधिकारी दवेंन्द सिंह का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। चतुर्थ , टंडवा थाना कांड संख्या 127/20 में कांड दैनिकी प्रस्तुत नहीं करने पर बाल कल्याण पुलिस अधिकारी जय गोपाल राय एवं अनुसंधानकर्ता पुलिस अवर निरीक्षक विरेन्द्र कुमार सिंह का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है। सभी वादों की अगली तिथि 03/08/22 निर्धारित किया गया है, अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि बिहार जे जे अधिनियम के 2017 के नियम 10(6) का उलंघन हुआ है तथा इससे किशोर न्याय परिषद के कार्यवाही आवश्यक रूप से आगे नहीं बढ़ पा रही है। कार्यवाही बार बार स्थगित हो रही है। छोटे और गंभीर अपराध के स्थिति में प्रथम सूचना दर्ज होने के दो माह के भीतर कांड दैनिकी प्रस्तुत करना आवश्यक है। जघन्य अपराध के मामलों में एक माह के भीतर कांड दैनिकी प्रस्तुत करना आवश्यक है।

चार साल कांड दैनिकी न्यायालय में प्रस्तुतनहीं ,केस समाप्त

अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि देव थाना कांड संख्या 119/18 जो गम्भीर अपराध का मामला था। घटना तिथि 21/10/18 की थी प्राथमिकी भादंसं की धारा 323,325,379,308, और डायन प्रथा प्रतिशेध अधिनियम में किया गया था। इसमें तीन वर्ष नौ महीने तक कांड दैनिकी प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस वाद के वाद प्रक्रिया को शुक्रवार को न्यायालय ने समाप्त कर दिया और वाद के जजमेंट में यह कहा गया है कि यह पुलिस की अक्षमता, लापरवाही और गेरजिम्मेदार‌ रवैया है कि चार साल से कांड दैनिकी न्यायालय नहीं लाया जा सका। जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट का एक फैसले का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि अपराध की प्रकृति 7 साल से कम सज़ा की हो और किशोर ने 16 वर्ष पुरी नहीं की हो तो तीन माह के अंदर आरोप पत्र दाखिल नहीं करने पर वाद प्रक्रिया समाप्त हो सकती है और मामले की कार्यवाही समाप्त की जा सकती है। जिसका लाभ अभियुक्त को मिला